किशोरावस्था (Adolescence) में होने वाली मानसिक स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं

इस ब्लॉग में जानिए “किशोरावस्था (Adolescence) में होने वाली मानसिक स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं”

किशोरावस्था (Adolescence) के दौरान बच्चों में किस तरह का विकास होता है ?

किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें बालक और बालिकाओं के मन अनेक विचार जन्म लेते हं। किशोरावस्था की आयु का पैमाना अलग अलग माना गया है। नए अध्ययनों के अनुसार 10 से 25 साल तक की उम्र किशोरावस्था की मानी जाती है।

इस समय को आप बहुत नाजुक समय भी कह सकते हैं। इस काल में बालक व बालिकाओं की दिमागी शक्तियों का विकास होता है। उनके अंदर व्यक्तित्व, भाव और कल्पनाओं का विकास भी शुरू होता है। किशोरावस्था को मनुष्य की जिंदगी का बसंत काल कहा जाए तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। बालक, बालिकाओं का भविष्य, उसकी रूपरेखा, किशोरावस्था में ही बन जाती है।

सच कहिए तो किशोरावस्था विकास की एक महत्वपूर्ण अवस्था होती है। इस अवस्था में किशोरों में अनेक परिवर्तन होते हैं। इसी के साथ ही किशोरावस्था काम भावना (सेक्शुअल डिज़ायर्स) के विकास की अवस्था भी होती है। काम वासना के विकास के कारण बालक व बालिकाओं के मन में अनेक इच्छाएं व विचार जन्म लेते हैं। 

किशोरावस्था शारीरिक परिपक्वता की भी अवस्था होती है। किशोरावस्था में दिमाग का भौतिक (physical) विकास पूर्ण रूप से हो जाता है इसीलिए इस अवस्था को दिमाग में स्थिरता लाने वाली अवस्था भी कहा जाता है।

इस अवस्था में किशोर जिसकी आयु 12 से 19 साल के बीच होगी उनके अंदर प्रत्यक्षीकरण संवेदना (परसेप्शन व संसेशन), कल्पनाएं, चिंतन, स्मृतियों, समस्या व उनके समाधान आदि की क्षमताओं व मानसिक शक्तियों का विकास होता है। 

किशोरावस्था में मनुष्य के चेतन मन में नवनीता और स्वाभाविकता (मैच्योरटी) का प्रारंभ होना शुरू हो जाता है। किशोर लोगों में सामाजिक बुराइयां, पुरानी परंपराओं, और रीति-रिवाजों और अंधविश्वासों का विरोध करने की एक प्रबल इच्छा पैदा होती है।  किशोर अपने मस्तिष्क का प्रयोग करके सही मापदंडों की खोज करने की कोशिश करता है। उसके चेतन मन (conscious innermost self) को नई दिशा मिलती है। किशोरों के मस्तिष्क में एक नई तरह की ऊर्जा होती है। इसके साथ-साथ उनके शरीर में भी ताकत का भी विकास होता है।

आज के इस लेख में हम किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं के बारे में चर्चा करेंगे। जैसा की ऊपर बताया जा चुका है कि किशोरावस्था क्या होती है? उसके साथ-साथ हम बात करेंगे कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं क्या होती हैं? आखिर वे क्या कारण हैं जो मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं बनती हैं? तो आइए जानते हैं इसके बारे में कुछ खास बातें जिनका प्रयोग करके हम किशोरों पर ध्यान देकर उन्हें इन समस्याओं से निजात दिला सकते हैं।

किशोरावस्था (Adolescence) में मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारण

आइए हम जानते हैं कुछ ऐसी बातों के बारे में जो किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती हैं। इसके कारण किशोरों के भविष्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

अनुवांशिकता (Heredity)

बालकों में मानसिक विकास अनुवांशिकता के कारण प्रभावित होता है। यदि बालक के परिवार में किसी को कभी कोई मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं रही हैं तो अनुवांशिकता के कारण बालक में भी वे समस्याएं आने की संभावना बहुत हद तक बढ़ जाती है।

शारीरिक स्वास्थ्य

बालकों में शारीरिक स्वास्थ्य उसके मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर होता है। यदि किसी बालक का शारीरिक विकास अच्छे तरीके से हो रहा तो इसका मतलब यह है कि उसका मानसिक विकास भी सही तरीके से हो रहा है। कई बार ऐसा होता है कि शारीरिक विकास में अगर कोई परेशानी आ रही हो तो इससे मतलब होता है कि व्यक्ति यानी बालक के मस्तिष्क में भी कुछ गड़बड़ी है जिसके कारण उसका पूरा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। 

एक प्रकार से शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक होते हैं। यदि किशोरावस्था में किशोरों को संपूर्ण आहार और पोषण से भरपूर चीज़ें नहीं मिल पाती हैं तो ऐसे में ना सिर्फ़ उनके शारीरिक विकास पर फ़र्क पड़ता है बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य के स्तर में भी काफ़ी गिरावट देखने को मिल सकती है। इसी के साथ साथ यदि मानसिक स्वास्थ्य में गड़बड़ी आ रही है तो वह गड़बड़ी शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती है।

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खुशहाल परिवार

अगर किशोर का परिवार खुशहाल है तो उसके मस्तिष्क और शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिससे किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य का विकास सही दिशा में होता है। वहीं यदि बात करें किसी ऐसे परिवार की जहां लोगों के बीच लड़ाई झगड़े होते हैं या बात बात पर कहासुनी हो जाती है तो वहाँ पर किशोर को काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। 

यदि परिवार में माता-पिता या भाई-बहनों में वाद विवाद होता रहता है तो ऐसे में घर में पल रहे किशोर के कोमल मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे किशोर के व्यक्तित्व में एक नकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा जिसके कारण किशोर नकारात्मक विचारों को अपने मन में जन्म दे सकता है। 

इससे किशोर के मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट होने की संभावना बढ़ जाती है। कई बार तो इन स्थितियों का किशोर के मन पर इतना बुरा असर पड़ता है कि किशोर किसी गंभीर मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो जाता है।

सामाजिक स्थिति

सामाजिक स्थिति बालकों के मस्तिष्क के विकास में बहुत महत्वपूर्ण योगदान देती है। यदि किसी का सामाजिक वातावरण सही है तो इसका अच्छा असर बालक पर पड़ेगा। बुरे वातावरण का प्रभाव बालक पर बुरा पड़ेगा। इसको आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं-

जैसा कि यहाँ पर कहा गया है कि सामाजिक स्थिति का किशोर के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। तो यदि किसी समाज में ऐसे लोग रहते हैं जिनका काम अपराध करना हो तो ये बिलकुल स्वाभाविक सी बात है कि उस समाज में पल रहे किशोर भी अपराध करने की शिक्षा प्राप्त करेंगे। इससे किशोरों के व्यक्तित्व में हिंसा की भावना का विकास होगा। तो वहीं यदि किसी समाज में ऐसे लोग रहते हैं जो सद्भावना को प्रचारित करते हों तो ऐसे में उस समाज में पल रहे किशोर सकारात्मक विचारों को अपने मन में जगह दे पाएंगे। इससे उनमें इंसानियत की भावना का भी जन्म होगा। ये ना सिर्फ़ उनके मानसिक स्वास्थ्य को ऊपर उठाएगा बल्कि उनके व्यक्तित्व में सकारात्मकता का भी प्रचार प्रसार करेगा।

अच्छा खानपान 

पोषण से भरपूर खानपान बालकों के मानसिक स्वास्थ्य के विकास को सुदृढ़ करता है। यदि किसी को पोषण से भरपूर खाना मिलता है तो उसके मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। 

भावनात्मक विकार (emotional disorder)

किशोरावस्था में भावनात्मक विकार किशोरों को प्रभावित करते हैं। किशोरावस्था की उम्र एक ऐसी उम्र होती है जहाँ पर किशोरों के मन में नई भावनाओं का जन्म होता है। 

यहाँ पर किशोरों का विकास हो रहा होता है इसलिए कई बार किशोर बाहर की स्थिति के साथ ख़ुद का सामंजस्य नहीं बिठा पाते। ऐसे में बालक व बालिकाओं में चिंता, अवसाद, अकेलापन, चिड़चिड़ापन, आवाज में गुस्सा, तनाव आदि जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं। यदि किशोरों की इन भावनाओं पर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चलकर यह चीजें समस्याएं पैदा कर सकती हैं। 

मनोविकृति या साइकोसिस

मनोविकृति के कारण किशोरावस्था में बालक व बालिकाओं में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। ऐसी हालत में किशोरों की आने वाली जिंदगी में कई समस्याएँ आ सकती हैं। यदि कोई किशोर साइकोसिस का शिकार हो जाता है तो उसके मन में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने लगती है। उसे तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती है।

मनोविकृति के कारण यह भी हो सकता है कि किशोर अकेला रहना पसंद करने लगे। ये स्थिति किशोर में आयसोलेशन का भाव विकसित कर सकती है जो कि सामान्य मानसिक अवस्था बिलकुल भी नहीं है। यदि आपको अपने किशोर बच्चे में साइकोसिस के लक्षण दिखें तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें अन्यथा भविष्य में उसे बहुत ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

मनोविकृति के कारण किशोर खुद पर ध्यान नहीं दे पाते जिसके कारण उनकी रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है। 

जोखिम उठाने की ललक और मार्गदर्शन का अभाव 

कई बार ऐसा होता है कि किशोरावस्था में किशोर नई नई चीजों को करने के बारे में सोचते हैं और वे अपनी जिंदगी में जोखिम उठाते हैं। जिसके कारण उनका शरीर और उनका मस्तिष्क प्रभावित होता है। कई बार तो वे शराब का सेवन करने लगते हैं और अपने दोस्तों के साथ मिलकर सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू का भी सेवन करते हैं जो कि उनके स्वास्थ्य और मस्तिष्क के लिए बहुत ज्यादा नुक़सानदेह होता है। यह सब चीजें किशोरों में हिंसा की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती हैं।

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किशोरावस्था (Adolescence) में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने के कुछ उपाय 

यह तो आप सभी जानते हैं कि किशोर अन्य लोगों के मुकाबले में अधिक भावनात्मक होते है। उनके अंदर कुछ करने का जज्बा बहुत ज्यादा होता है। इसके साथ साथ उनके अंदर नए मापदंडों को प्रयोग करने की भी ललक होती है। 

यह एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें उनके चिंतन को नई दिशा मिलती है परंतु यह बात बहुत महत्वपूर्ण होती है कि वह चीजों को सकारात्मक ले रहे हैं या नकारात्मक। यदि किशोरावस्था में उन पर सकारात्मकता का प्रभाव पड़ता है तो फिर भविष्य में वे खुशहाल रहेंगे और उनका जीवन सफल होगा। यदि किशोरावस्था में किशोरों के आस पास नकारात्मक चीजें हैं तो उनको जीवन भर पछताना पड़ सकता है। साथ ही उनको  बहुत सारी परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है। इन सभी समस्याओं का निवारण होना बहुत ज़रूरी है।

तो आइए जानते हैं कि किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए।

  • किशोरों को सम्मान दें, और उन्हें इस बात का अहसास दिलाएं कि वह भी घर के एक अहम सदस्य हैं। किशोरों को किसी भी तरह से नजरअंदाज ना करें क्योंकि नजरअंदाज करना उनकी भावनाओं को चोट पहुंचा सकता है। किसी ही ज़रूरी मुद्दे पर उनकी राय लेना भी आवश्यक समझें और उन्हें नजरअंदाज करने से बचें। यदि ऐसा करेंगे तो उनकी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं दूर होगी और उनके मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 
  • किशोरों का पालन पोषण अच्छे वातावरण और अच्छी सामाजिक स्थिति में होना चाहिए। समाज और वातावरण का बहुत ज्यादा असर उनके मस्तिष्क और शरीर पर पड़ता है। इसलिए उन्हें बुरे वातावरण से बचाएं।
  • किशोरावस्था में किशोरों के साथ अपने व्यवहार को अच्छा रखें। उन्हें ऐसा लगना चाहिए कि उनकी उनके परिवार में बहुत अहमियत है। परिवार के अन्य सदस्यों को उनका अच्छे से ख्याल रखना चाहिए, और उन्हें उनकी जिम्मेदारियों का एहसास दिलाना चाहिए।
  • किशोरों के मन की बातें जानने की कोशिश करें। माता-पिता को ऐसा वातावरण बनाना चाहिए कि बच्चे अपने मन में कोई बात ना रखें। माता-पिता को चाहिए कि दोस्त बनकर अपने बच्चे के दिल की बात को जानने का प्रयास करें।
  • किशोरावस्था में किशोरों के खान पान की देखभाल करें। उन्हें  पोषण से भरपूर खाना खिलाएं ताकि उनका शारीरिक और मानसिक विकास अच्छे से हो। 
  • किशोरों को भरपूर नींद लेनी चाहिए और समय का ख्याल रखना चाहिए। यदि उनकी जीवनशैली सही रहेगी तो उनके मस्तिष्क और शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यदि वे रात में देर तक जागेंगे और सुबह देर से उठेंगे तो इसका उनके मस्तिष्क और शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे वे चिंता, तनाव, चिड़चिड़ापन, जैसी मानसिक समस्याओं से पीड़ित रहेंगे।
  • किशोरों के बारे में पता होना चाहिए कि वे स्कूल में क्या करते हैं? उनका स्कूल में बच्चों के प्रति कैसा व्यवहार है? उनकी परफॉर्मेंस क्लास में बेहतर है या वे अन्य बच्चों से कम है। इन तमाम चीजों के बारे में माता-पिता को पता होना चाहिए। क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि घर के लड़ाई झगड़ों के कारण वे बच्चे पर अच्छी तरीके से ध्यान नहीं दे पाते। जिसके कारण उनके बच्चे की परफॉर्मेंस क्लास में गलत दिशा में जा रही होती है। उनका व्यवहार भी ख़राब हो जाता है। जिससे स्कूल और स्कूल के बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • किशोरों को समय दें। उनसे बातचीत करें। उनकी हर सही बात को अहमियत दें और मानें। उन्हें इस बात का एहसास दिलाएं कि क्या बातें जीवन में सही हैं और क्या गलत? समय समय पर उनसे बातचीत करें। किशोरों की उन बातों को ना मानें जो ग़लत हैं। इससे वे मनमानी करने लगेंगे और ज़िद्दी हो जाएंगे।
  • किशोरो कि सामने कभी भी कोई ऐसा काम ना करें जिसका उन पर बुरा प्रभाव पड़े।

निष्कर्ष

यदि आप चाहते हैं कि भविष्य में आपके बच्चे के साथ कुछ बुरा ना हो, और आपके बच्चे का भविष्य उज्जवल रहे, तो आपको चाहिए कि किशोरावस्था में ही उस पर ध्यान दें। यदि कोई व्यक्ति किशोरावस्था को सही तरीके से पार कर ले  तो वह भविष्य में भी काम अच्छा करेगा क्योंकि किशोरावस्था में ही मानसिक शक्तियों का पूर्ण विकास होता है। अगर आप अपने बच्चे में किसी भी तरह की कोई भी समस्या देखें तो चिकित्सक से संपर्क करें। उसे नजरअंदाज ना करें। अन्यथा आपको बाद में पछताना पड़ सकता है। आपका बच्चा नकारात्मक व्यवहार करके अपना भविष्य बर्बाद कर सकता है।

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