पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर क्या है? जाने इसके कारण, लक्षण और इलाज़ के बारे में

इस ब्लॉग में हम जानेंगे “पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर क्या है? जाने इसके कारण, लक्षण और इलाज़ के बारे में

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (Post-Traumatic Stress Disorder) अर्थात किसी घटना के कारण होने वाला तनाव या सदमा। ऐसी घटना जिसे व्यक्ति चाह कर भी ना भूल पाए और वह घटना रह रह कर उसके मस्तिष्क में आए। इसके कारण व्यक्ति परेशान रहने लगता है। वह किसी भी काम को आसानी से नहीं कर पाता।

यह बीमारी एक मानसिक बीमारी (mental disease) है। इसमें व्यक्ति अपने भूतकाल में हुई किसी घटना या दुर्घटना का का सामना करता है और उसके कारण तनावग्रस्त महसूस करता है।

कभी-कभी ऐसा होता है कि व्यक्ति कोई ऐसी बात सुन या देख लेता है जिसका प्रभाव उसके मस्तिष्क पर काफ़ी गहरा पड़ता है। वह घटना उसे बार-बार डराती है। उस घटना से संबंधित चीजें भी उस व्यक्ति को परेशान करती हैं जिसके कारण वह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को एक सामान्य जीवन की तरह व्यतित नहीं कर पाता।

ऐसी दुर्घटनाएं जिसको उसने देखा हो, अनुभव किया हो, वे सब उसके सपने में भी फ्लैशबैक (flashback) की तरह बार-बार आंखों के सामने आने लगती हैं। इससे वह बहुत ज्यादा चिंतित हो जाता है।

यह चिंताएं इतनी बढ़ जाती हैं कि व्यक्ति अकेला रहने लगता है। यहां तक कि वह आत्महत्या करने की भी कोशिश करता है। इस मानसिक बीमारी के कारण उसके व्यवहार में परिवर्तन आने लगता है। वह सामाजिक और पारिवारिक लोगों से दूर रहने की कोशिश करता है। ऐसे लोगों के दिमाग का वह हिस्सा जिसको हिप्पोकैम्पस (Hippocampus) कहा जाता है वह छोटा हो जाता है।

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के कारण | Reasons of Post- Traumatic Stress Disorder in hindi

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के कई कारण हो सकते हैं। जैसे यदि व्यक्ति की पिछली जिंदगी में कोई दुःखद घटना घटी हो तो उसका प्रभाव व्यक्ति पर नकारात्मक पड़ जाता है।

कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति अपने किसी प्रिय की मौत को भी आसानी से भूल नहीं पाता। वह चीजें उसे बार-बार याद आती हैं। इससे वह अपने जीवन में बहुत सी परेशानियों का सामना करने लगता है।

सिर्फ़ दुखद घटना ही नहीं बल्कि शर्मिंदगी का कारण बनने वाला पल भी पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर को जन्म दे सकता है।

कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति अपने अतीत में अपनी किसी बेइज़्ज़ती को भुलाने में असमर्थ होता है। ऐसे में व्यक्ति को भयंकर तनाव (stress) का सामना करना पड़ता है। इसके चलते व्यक्ति एक नॉर्मल ज़िंदगी जीने में असमर्थ होने लगता है। यह पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस की स्टेज हो सकती है जहाँ पर अनेक घटनाओं से होने वाले सदमें के कारण व्यक्ति तनावग्रस्त महसूस करता रहता है।

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षण | Post Traumatic Stress Disorder symptoms in hindi

सामान्य जीवन जीना मुश्किल

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से जूझने वाले व्यक्तियों को उनके सामान्य जीवन में बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वह सामान्य लोगों की तरह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को नहीं गुजार पाते। दूसरों के प्रति भयभीत रहते हैं। उनका किसी काम में मन नहीं लगता। वे हमेशा चुप रहते हैं और जरूरी कामों को भूल जाते हैं। ऐसे लोगों को सदा तनाव और दुख महसूस होता रहता है।

सोचने समझने में मुश्किल होना

जिन लोगों को यह मानसिक बीमारी होती है उनके अंदर सोचने समझने की क्षमता खत्म हो जाती है। वह किसी भी चीज को बस टिकटिकी बांधकर देखते हैं। वे एक ही स्थान पर घंटों बैठे रहते हैं। ऐसे लोग एक विशिष्ट स्थान या किसी एक जगह को चुन लेते हैं और वही रहना पसंद करते हैं।

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस से जूझ रहे व्यक्ति को दूसरों का व्यवहार समझने में समय लगता है। ये लोग किसी पर भरोसा नहीं कर पाते। ऐसे लोगों को इस बीमारी से निकालने में काफी सारी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है। ये किसी भी काम को सही से नहीं कर पाते यहां तक कि ये लोग वह हिसाब किताब या किसी भी चीज़ को याद रखने में भी बहुत कमजोर हो जाते हैं। यह मानसिक विकार से जुड़ी हुई एक गंभीर समस्या है।

डिप्रेशन में चले जाना

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के कारण लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं। यहां तक कि वे आत्महत्या करने की भी कोशिश करते हैं। ऐसे लोग हमेशा चिड़चिड़े और गुस्से में रहते हैं तथा दुखी महसूस करते हैं।

व्यवहार में परिवर्तन और समस्या

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस का सामना कर रहे लोगों का अन्य लोगों के प्रति व्यवहार बहुत ही ज्यादा अजीब रहता है। वे दूसरों से बात करने से कतराते हैं।

ये अन्य लोगों से मिलते जुलते नहीं। यहां तक कि कभी ऐसा भी होता है कि किसी की छोटी सी भी ग़लती को देखकर चिल्लाने भी लगते हैं। किसी भी महफिल में वह किसी बात पर गुस्सा हो सकते हैं और दूसरों को मारने भी लगते हैं। कई बार तो ऐसे लोग खुद को ही हानि पहुंचा लेते हैं। उनके अंदर एकाग्रता की काफ़ी कमी होती है।

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सामाजिक नहीं हो पाते

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस एक ऐसी मानसिक बीमारी है जो लोगों को अकेला रहने पर मजबूर कर देती है। ऐसे लोग ना सिर्फ़ भीड़ से बचने की कोशिश करते हैं बल्कि ये लोग परिवार के सदस्यों से भी दूर हो जाते हैं। इन्हें लोगों के बीच घुटन महसूस होती है।

ये लोगों से मिलना जुलना छोड़ देते हैं और अकेले रहकर अपने पुराने अतीत की घटनाओं व दुर्घटनाओं पर विचार करते रहते हैं। इससे इनकी ये बीमारी और ज़्यादा बढ़ने लगती है।

इसी के साथ ये लोग सामाजिक भी नहीं हो पाते हैं। यदि कोई दूसरा व्यक्ति इनसे बात करने की कोशिश करता है तो ये उसकी बातों पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। ये लोग दूसरों की बातों पर सही से प्रतिक्रिया भी नहीं दे पाते जिसके कारण लोगों के बीच इनकी इमेज ख़राब होने लगती है।

ये चीज़ें भी इन लोगों को अकेला रहने पर मजबूर करती हैं और ये चाहकर भी सामाजिक नहीं हो पाते हैं। इन्हें सदैव अपनी पुरानी गलतियों के बारे में विचार आते रहते हैं।

खुद को तकलीफ देना

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति खुद को मारना, पीटना, काटना और तकलीफ देना शुरू कर देता है।

आत्महत्या करने की कोशिश

ऐसे लोग जल्दी निराश हो जाते हैं और निराशा में आकर आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं। कई बार वे आत्महत्या करने से बच भी जाते हैं परंतु वे ऐसा बार-बार करने की कोशिश करते हैं।

सोने से कतराना

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर वाले लोग सोने से कतराते हैं। ऐसे लोग इसलिए नहीं सोना चाहते क्योंकि उनके सपने विचलित कर देने वाले होते हैं। वह घटना उनके दिमाग में या सपने में बार-बार आती हैं जिसे देखकर वह बेचैन हो जाते हैं। इसीलिए पीड़ित लोग सोना नहीं चाहते।

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का इलाज | Treatment of Post-Traumatic Stress Disorder in hindi

मनोवैज्ञानिक के द्वारा

वैसे तो मनोविज्ञान में बहुत सारी तकनीकें शामिल हैं जिनके द्वारा मानसिक विकारों का इलाज किया जाता है लेकिन विशिष्ट मनोवैज्ञानिक तरीक़े भिन्न है। सरल शब्दों में कहें तो मानसिक विकारों का इलाज जब मनोवैज्ञानिक तरीक़ों के द्वारा किया जाता है तो ऐसे में मनोवैज्ञानिक विभिन्न थैरेपी के द्वारा बीमारी का इलाज करता है।

एल्विन मैं मनोवैज्ञानिक तरीक़े को अपनाकर चलाया जाने वाला इलाज प्रभावशाली होता है लेकिन इसकी अवधि थोड़ी लंबी हो सकती है। यह इलाज लंबा होता है और कभी कभी तो यह जीवन पर्यंत भी चलता रहता है।

इसी के साथ साथ लोग अक्सर साइकोलॉजिस्ट (Psychologist) के पास जाने से डरते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है की ऐसा करने से लोग उन्हें पागल समझेंगे। हम आपको बताते चलें कि साइकोलॉजिस्ट ( (Psychologist) ) से इलाज करवाने से ही कोई इंसान पागल नहीं होता बल्कि इंसान नार्मल ज़िंदगी जीने की तरफ़ आकर्षित होता है। इसलिए कभी भी और मानसिक बीमारी होने पर तो साइकोलॉजिस्ट (Psychologist) के पास अवश्य जाएँ।

काउंसलिंग (Counselling) के द्वारा

मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग के द्वारा पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर वाले लोगों की पीड़ा को जानने की कोशिश करते हैं। फिर उस वजह को जानने के बाद उसी के द्वारा उनका इलाज किया जाता है।

हिप्नोसिस (Hypnosis)

हिप्नोसिस (Hypnosis) एक प्रकार की प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनोवैज्ञानिक मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों के मस्तिष्क पर थोड़ी देर के लिए कब्जा कर लेते हैं।

मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्ति सोचने समझने की क्षमता खो देता है। यही कारण है कि हिप्नोसिस (Hypnosis) करके मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति पर इस तरह नियंत्रण किया जाता है कि उनसे जो पूछा जाए वह वही बताएँ।

दवाओं के द्वारा

बहुत सी ऐसी दवाएं होती हैं जिनके द्वारा स्ट्रेस या तनाव को कम किया जाता है। इनसे लोगों को पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से निकालने में सहायता भी मिलती है।

हमारा मस्तिष्क का एक भाग यादों और भावनाओं को अनुभव करने में अहम भूमिका अदा करता है। दिमाग के इस हिस्से को हिप्पोकैम्पस (Hippocampus) कहा जाता है।

मस्तिष्क की कोशिकाओं को सही रखने के लिए दवाएं दी जाती हैं जिसके द्वारा हमारा मस्तिष्क सही से काम करें।

Conclusion | निष्कर्ष

हम देख सकते हैं आप कि पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर एक गंभीर मानसिक बीमारी है जो व्यक्ति को सामान्य जीवन जीने से रोकती है।

पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर को यदि एक पंक्ति में कहें तो ये किसी विशेष दुर्घटना या शर्मिंदगी के कारण होने वाला तनाव है जो व्यक्ति को काफ़ी समय बीत जाने के बाद भी याद आता रहता है और उसे परेशान करता रहता है।

एक विशेष बात जो मानसिक बीमारी के बारे में जाननी चाहिए वह यह है कि वक़्त के साथ साथ यदि मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को अकेला छोड़ दिया जाए तो वह और गंभीर रूप से बीमार होने लगता है। इसलिए मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को पागल ना समझ कर उसकी इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाना ज़रूरी है।

मानसिक बीमारी अन्य शारीरिक बीमारियों से भी ज़्यादा ख़तरनाक हो सकती है। इसलिए इसकी गंभीरता को समझते हुए साइकोलॉजिस्ट के पास जाकर मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्ति का इलाज अवश्य कराएं।

इस लेख में हमने पोस्ट- ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के विषय में कुछ महत्वपूर्ण बातों की चर्चा की है। हम आशा करते हैं कि इस लेख के माध्यम से आपको आवश्यक जानकारी उपलब्ध हो गई है।

लेख से संबंधित यदि आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप उसे कॉमेंट बॉक्स में लिखकर हमसे शेयर कर सकते हैं।

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