एडीएचडी (ADHD) और चिंता क्या इन दोनों चीजों का आपस में कुछ कनेक्शन है?

इस ब्लॉग में हम जानेंगे “एडीएचडी (ADHD) और चिंता क्या इन दोनों चीजों का आपस में कुछ कनेक्शन है?

एडीएचडी (ध्यान एवं अतिसक्रियता विकार) और चिंता दोनों अलग-अलग चीजें हैं परंतु बहुत से लोग दोनों को एक मानते हैं। यह मान्यता गलत है क्योंकि एडीएचडी और चिंता दोनों बीमारियों के लक्षण और इलाज आपस में कोई संबंध नहीं रखते।

एडीएचडी (ADHD) जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention Deficit Hyperactive Disorder) यानी कि ध्यान की कमी और मन की चंचलता। इसके विपरीत चिंता एक अलग तरीके की बीमारी है।

इसमें लोगों को बहुत ज्यादा तनाव होने लगता है और वह इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में परेशानियां पैदा होने लगती हैं।

एडीएच एक ऐसी बीमारी है जो कि छोटे बच्चों को होती है खासतौर से उन बच्चों को जो स्कूल जाते हैं। आज हम चर्चा करेंगे कि ए॰डी॰एच॰डी॰ और चिंता में क्या अंतर है और यह दोनों क्या होती हैं? दोनों का आपस में कुछ संबंध है या नहीं? तो आइए जानते हैं इसके बारे में।

एडीएचडी (ध्यान एवं अतिसक्रियता विकार) के बारे में कुछ जानकारी | ADHD ke baare mei kuch jaankari in hindi

ए॰डी॰एच॰डी॰ (ADHD) मानसिक विकार का एक समूह है जो व्यक्ति के व्यवहार को बुरी तरह प्रभावित करता है। इसको मानसिक विकार का एक समूह इसलिए कहा गया है क्योंकि इसमें कोई एक मानसिक समस्या नहीं होती है बल्कि इसमें कई तरह की मानसिक समस्याएं होती हैं। यह खासकर छोटे बच्चों को होता है।

वे बच्चे जो स्कूल जाते हैं वह अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। बड़े होने के साथ-साथ यह बीमारी खत्म होने लगती है परंतु कभी-कभी इसके कुछ लक्षण बड़े बच्चों में भी पाए जाते हैं जिसको एडल्ट एडीएचडी (Adult ADHD) कहा जाता है।

यदि इस बीमारी का सही समय पर इलाज नहीं कराया जाता तो यह खतरनाक साबित हो सकता है। जब यह समस्या 6 महीने से अधिक बढ़ जाए तो बच्चे के माता-पिता को चाहिए कि वह किसी डॉक्टर से संपर्क करें। किसी साइकोलॉजिस्ट या साइकैटरिस्ट के पास जाकर समस्याओं को बताएं क्योंकि यह समस्या नजरअंदाज करने से इसका बच्चे के विकास पर तथा बड़े होने के बाद की अवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है।

अक्सर आपने स्कूल में देखा होगा कि शिक्षक बच्चों की शिकायत उनके माता-पिता से करते हैं परंतु माता-पिता ज्यादा ध्यान नहीं देते। वे उनकी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं कि बच्चा अभी छोटा है और यह चंचलता करता ही रहता है परंतु यह दरअसल ध्यान देने योग्य बात हो सकती है।

इस कोरोना काल में जब माता-पिता के सामने यह स्तिथि अधिक पड़ी तब उन्हें एहसास होने लगा कि यह तो एक समस्या है।

एडीएचडी (ध्यान एवं अतिसक्रियता विकार) होने के लक्षण | ADHD ke symptoms in hindi

  • बच्चे सही से अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते
  • वे किसी की बातों को ध्यान से नहीं सुनते
  • बहुत जल्दी किसी भी बात से उकता या बोर हो जाते हैं
  • बड़ों की बातों में ज़्यादा रुचि लेते हैं
  • दूसरों की बातों को नहीं सुनते हैं
  • पूरी बात सुने बिना ही बोल पड़ते हैं
  • उनके अंदर धैर्य नहीं होता
  • जिन बच्चों के अंदर यह बीमारी पाई जाती है उनके हाथ-पैर हमेशा चलते रहते हैं और वे किसी भी जगह पर स्थिर नहीं रह पाते
  • ऐसे बच्चे बहुत ज्यादा बोलते हैं और उनके अंदर थकान नहीं पाई जाती
  • ए॰डी॰एच॰डी॰ से पीड़ित बच्चों के अंदर गुस्सा और चिड़चिड़ापन होता है
  • ए॰डी॰एच॰डी॰ से पीड़ित बच्चों के अंदर बहुत ही ज्यादा ऊर्जा पाई जाती है

एडीएचडी होने से क्या होता है? | ADHD hone se kya hota hai in hindi?

 एडीएचडी होने से क्या होता है ADHD hone se kya hota hai in hindi
  • ऐसे बच्चे बड़े होने के बाद जब युवा अवस्था में पहुंच जाते हैं तो उनके अंदर आत्मविश्वास की कमी आ जाती है। वह अपने आप को दूसरों से कम समझते हैं।
  • इस मानसिक बीमारी का सही से इलाज ना कराने पर बड़े होने पर उनको परिवारिक समस्या हो सकती है। कई बार इस बीमारी से पीड़ित लोग परिवारिक संबंध बनाने में सफल नहीं रह पाते।
  • ऐसे बच्चों में कारोबारी समस्याएं भी आ सकती हैं। वे बड़े होने पर सही से कारोबार नहीं कर पाते।
  • सामाजिक होने में इनको काफी वक्त लगता है। ऐसे लोग सामाजिक नहीं हो पाते और खुद को लोगों से कम समझने लगते हैं।
  • ऐसे लोगों के साथ दुर्घटनाएं होने की आशंका बढ़ जाती है।

एडीएचडी का सही इलाज कैसे करें? | ADHD ka sahi ilaaz kaise karein?

  • बच्चों पर सही से ध्यान दें।
  • उनकी फालतू की ज़िद को ना पूरा करें।
  • बच्चों पर माता पिता को अपनी पसंद नापसंद नहीं थोपना चाहिए बल्कि उनकी पसंद और नापसंद का भी ध्यान रखना चाहिए।
  • अपने बच्चों को पोषण से भरपूर खाना देना चाहिए। उन्हें फ़ास्ट फ़ूड से दूर रखें। पोषण से भरपूर आहार से उनके मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने के कारण वे अच्छा व्यवहार करना सीखते हैं।
  • बच्चों की बढ़ती उम्र के लिए विटामिन व प्रोटीन बहुत जरूरी है। खासतौर से विटामिन B12 (Vitamin B12) का ध्यान रखें।

एडीएचडी की कुछ जांचें | ADHD ke kuch tests in hindi

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चिंता (तनाव) से संबंधित कुछ बातें | Chinta (Tanav) se sambandhit kuch baatein in hindi

अब हम कुछ बातें चिंता से संबंधित करेंगे ताकि हमको पता चले कि ए॰डी॰एच॰डी॰ और चिंता में कितना अंतर है? चिंता यानी तनाव

जब किसी व्यक्ति पर उसके सामर्थ्य से ज्यादा मानसिक दबाव पड़ता है तो उसे चिंता होने लगती है। जब भी चिंता की अवधि बढ़ जाती है या ये कई महीने से अधिक हो जाए तो यह व्यक्ति की रोजमर्रा की जिंदगी को भी प्रभावित करने लगती है।

चिंता के कारण व्यक्ति के व्यवहार पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। यह एक मानसिक बीमारी है। चिंता खासतौर से युवाओं को ज़्यादा होती है। यह मानसिक बीमारी बारह-तेरह साल के बच्चों से लेकर बूढ़े लोगों तक को हो सकती है।

चिंता से पीड़ित लोग बहुत ज्यादा सोचते हैं और डरते भी रहते हैं कि उनके साथ आगे क्या होगा। वे नकारात्मक विचारों से घिरे रहते हैं इसलिए उनको बहुत ज्यादा बेचैनी और तनाव होने लगता है।

यह चिंता इतनी बढ़ जाती है कि लोग अपने रोजमर्रा के काम भी सही से नहीं कर पाते। इससे उनके व्यवहार में बहुत बदलाव देखने को मिलता है।

चिंता से पीड़ित लोग अपने आसपास के लोगों पर गुस्सा उतारते है। उन्हें हर समय चिड़चिड़ापन महसूस होता है। इस बीमारी के कारण उनके परिवार के लोगों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

चिंता से पीड़ित व्यक्ति कुछ विशेष लक्षण दर्शाता है। आइए जानते हैं चिंता के लक्षणों के बारे में।

चिंता ( तनाव) के लक्षण | Chinta (Tanav) ke symptoms in hindi

  • सही से नींद ना आना।
  • हमेशा थका हुआ महसूस करना।
  • सांस लेने में समस्या होना।
  • सर चकराना।
  • ज्यादा पसीना आना।
  • बिना काम किए कमजोरी महसूस होना।
  • बिना बात के घबराहट होना।
  • समय पर भूख ना लगना व हमेशा पेट भरा भरा लगना।
  • किसी भी काम पर सही से ध्यान ना दे पाना।
  • चिड़चिड़ापन महसूस होना।
  • जल्दी ग़ुस्सा आना।
  • रोजमर्रा के कामों को करने में भूल चूक होना

चिंता जो एक मानसिक बीमारी है उससे कैसे बचें? | Chinta jo ek mansik bimari hai uss se kaise bachein in hindi?

  • चिंता से बचने के लिए व्यक्ति को अपने खान-पान पर ध्यान देना चाहिए और पोषण से भरा हुआ आहार ही लेना चाहिए। हम जो भी भी चीज़ खाते हैं उसका प्रभाव हमारे मन मस्तिष्क पर पड़ता हैं। पोषण से भरे हुए आहार का व्यक्ति के स्वास्थ्य और मस्तिष्क पर अच्छा प्रभाव पड़ता है
  • हर रोज सुबह उठकर व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम करने से चिंता दूर होती है।व्यायाम करने से व्यक्ति के अंदर चिंता उत्पन्न करने वाले हार्मोन में कमी आने लगती है। व्यायाम करने से पॉज़िटिव एनर्जी (positive energy) मिलती है जिससे हमें अच्छा महसूस होता है।
  • चिंता जैसी मानसिक बीमारी से बचाव करने के लिए हमें चाहिए कि कि हम नियमित समय पर ही सोएँ। जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। इससे हम अपने सभी काम समय पर पूरा कर सकते हैं जिससे चिंता उत्पन्न नहीं होती।
  • नकारात्मक चीजों और वातावरण से दूरी बनाए रहें। नकारात्मक लोग या चीजें चिंता और अवसाद का मुख्य कारण हैं।
  • सकारात्मक विचार रखें और सकारात्मक लोगों के साथ ही रहें।

एडीएचडी और चिंता इन दोनों का आपस में कनेक्शन/सम्बंध | ADHD aur chinta inn dono ka aapas mei connection/sambandh in hindi

एडीएचडी और चिंता यह दोनों अलग-अलग बीमारियाँ हैं परंतु कई बार ऐसा होता है कि यह दोनों बीमारियां व्यक्ति को एक साथ हो सकती हैं। इस लेख में दोनों का इलाज और लक्षण भी बताए गए हैं।

हालांकि ए॰डी॰एच॰डी॰ के बारे में ये माना जाता है कि 12 साल के बाद यह बीमारी खत्म हो जाती है परंतु यह 20 साल तक भी रह सकती है। इसको बड़ों वाली एडीएचडी (Adult ADHD) कहा जाता है। यह नोरएपिनेफ्रीन (Norepinephrine) और डोपामिन (Dopamine) की कमी के कारण होता है।

कभी-कभी ए॰डी॰एच॰डी॰ की वजह व्यक्ति कोई ऐसा कार्य कर देता है जो चिंता का विषय बन सकता है।

इन दोनों मानसिक बीमारियों का एक साथ होना घातक हो सकता हैं। कई बार ऐसा होता है कि चिंता ए॰डी॰एच॰डी॰ पर हावी हो जाती है। दोनों का इलाज एक साथ होना एक बड़ी चुनौती बन जाती है क्योंकि ए॰डी॰एच॰डी॰ के लिए दी जाने वाली कुछ दवाएं चिंता के लक्षण को बढ़ा सकती हैं। हालांकि दोनों का इलाज वक्त पर ही कराना चाहिए क्योंकि अगर इनके इलाज में देरी हो गई तो यह आने वाली जिंदगी पर बुरा प्रभाव डालेंगे। इनसे बचने के लिए डॉक्टर से संपर्क करें और उनके बताई हुई बातों को अपनाएं।

निष्कर्ष | Conclusion

इस लेख में ए॰डी॰एच॰डी॰ और चिंता के बारे में जानकारी दी गई है और उसके इलाज के बारे में भी बताया गया है।

 ए॰डी॰एच॰डी॰ और चिंता का आपस में संबंध भी बयान किया जा चुका है। अब हमें बस इस बात का ख्याल रखना है कि इन दोनों बीमारियों से बचें क्योंकि इन दोनों का हमारे दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे आने वाली जिंदगी में काफी सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

लेख से संबंधित सवालों और सुझावों को कॉमेंट बॉक्स में लिखकर आप हमसे शेयर भी कर सकते हैं।

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